Monday, September 10, 2018

non medical teachers in medical colleges

मेडिकल कॉलेजों में गैर-चिकित्सा शिक्षकों की भूमिका

इन दिनों मेडिकल कॉलेजों में एक विषय चर्चा का मुद्दा बना है. इस बहस को छेड़ा है MCI ने.  5  जून के कार्यकारी समिति की बैठक में यह प्रस्ताव लाया गया की मेडिकल कॉलेजों में गैर चिकित्सक शिक्षकों की भर्ती ३०-50% से १५-25% तक की जाय. इस विषय पर राय देने के लिए AIIMS के तीन प्रोफेसरों की एक उप समिति घटित की गयी है. इस उप समिति ने अभी तक अपना राय MCI को नहीं भेजा.

यह प्रस्ताव क्यों आया और इसके लागू होने से क्या प्रभाव हो सकते हैं, यह जानने के लिए हमें १९६० की ओर जाना होगा. यह वह समय था जब मेडिकल कॉलेजों में प्री-क्लिनिकल और पारा-क्लिनिकल विषयों में शिक्षकों कि भारी कमी थी. अधिक्तर डॉक्टर MBBS के बाद अपने MD के लिए क्लिनिकल विशयों का चयन करते थे, इस कारण से प्री-क्लिनिकल और पारा-क्लिनिकल विषयों में शिक्षकों की कमी आई. इस कमी को दूर करने के लिए स्वास्त्य मंत्रालय द्वारा घटित एक समिति (मुदालियर समिति) के सुझाव पर गैर-MBBS स्नातकों को मेडिकल कॉलेजों में मेडिकल M.Sc कोर्स के लिए भर्ती करना तय हुआ.

MCI द्वारा मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेजों में वही विषय पढाये जा सकते हैं जो Indian Medical Council अधिनियम के प्रथम अनुसूची में उल्लेख हों. मेडिकल M.Sc कोर्स का उल्लेख भी इसी उनुसूची में है. तब के मेडिकल कॉलेज मेडिकल M.Sc कोर्स शुरू करने से पहले MCI की अनुमति लिया करते थे.  यूँ तो M.Sc कोर्स दो साल के होते हैं लेकिन मेडिकल M.Sc कोर्स तीन साल के होते हैं. मनुष्य के शरीर के रचना और कार्यप्रणाली को समझने के लिए कोर्स का प्रथम वर्ष MBBS के प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम जैसा होता है. बाकी के दो साल में अपने चुने हुए विषय पर अध्ययन करते हैं. ये विषय हैं - प्री-क्लिनिकल में एनाटोमी, बायोकेमिस्ट्री और फिजियोलॉजी तथा पारा-क्लिनिकल में फार्माकोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी. इन्ही विषयों पर मेडिकल कॉलेजों में MD कोर्स भी होते हैं. ये दोनों कोर्स साथ साथ कॉलेज के प्राध्यापक ही पढ़ाते हैं. इन दोनों कोर्स का पाठ्‍यक्रम और अध्ययन सूची एक सामान होते हैं.  करीब ३० फ़ीसदी गैर-मेडिकल शिक्षकों ने Ph.D भी हासिल की है.

करीब १९८० के दशक में MCI ने मेडिकल M.Sc कोर्स से अपने नाता तोड़ लिया. वह अब इस कोर्स की प्रथम अनुसूची में उल्लेख की भी पुष्टि नहीं देती. MCI-अधिकृत मेडिकल कॉलेजों में कितने गैर-डॉक्टर  शिक्षक हैं, इसका ब्यौरा भी MCI के पास नहीं है.

मेडिकल M.Sc प्राप्त स्नातकोत्तर मेडिकल कॉलेज के प्री-क्लिनिकल और पारा-क्लिनिकल विषयों में अध्यापक नियुक्त होते थे और अनुभव के साथ प्राध्यापक और विभाग के प्रमुख भी बन जाते थे. चूंकि वे डॉक्टर नहीं हैं, उन्हें नॉन-मेडिकल शिक्षक कहा जाता है. किसी समय में देश के ९० से भी अधिक मेडिकल कॉलेजों में मेडिकल M.Sc कोर्स चलाये जाते थे, अब इनकी मात्रा ३० के करीब आ गयी है. इसकी वजह MCI द्वारा MBBS और MD सीटों में अचानक वृद्दि है. अब पहले की तुलना में डॉक्टर प्री-क्लिनिकल और पारा-क्लिनिकल विषयों में MD के लिए भर्ती होने लगे. इससे अत्यधिक डॉक्टर शिक्षक की नौकरी ढूँढने लगे. उन्ही की तरह मेडिकल M.Sc वाले भी नौकरी के अभ्यर्थी बने. नौकरी की इस होड़ ने हालत प्रदूषित कर दिया

डॉक्टरों को लगने लगा की मेडिकल कॉलेजों में शिक्षक के पहले हकदार वे ही हैं और मेडिकल M.Sc वाले उनके रोज़गार और पदोन्नति में बाधा बन रहे हैं. अपने रोज़गार के अवसरों की सुरक्षा के लिए और प्रतिस्पर्धा को ख़त्म करने के लिए अनेक प्रकार के प्रयास शुरू हुए. पहले मेडिकल M.Sc कोर्स पर सवाल उठाये गए और फिर उनके सामर्थ्य और योग्यता पर प्रश्न उठाये गए. कहा जाने लगा की सिर्फ एक डॉक्टर हो मेडिकल स्टूडेंट को बेहतर पढ़ा सकता है क्योंकि उनके पास क्लिनिकल अनुभव होता है.

MCI के नियम-अनुसार प्री-क्लिनिकल और पारा-क्लिनिकल विषयों में गैर-डॉक्टर शिक्षकों की संख्या ३० फीसदी (बायोकेमिस्ट्री में ५० फीसदी) से अदिकतम नहीं हो सकती. इन गैर-क्लिनिकल विषयों की शिक्षा देने के लिए सिर्फ डॉक्टर ही हो, ऐसा आवश्यक नहीं है. यह तो शुरुआत के पहले दो वर्षों में पढाई जाती है, बाकी के 2½ वर्षों में क्लिनिकल विषय ही पढाये जाते हैं, जो सिर्फ मेडिकल शिक्षक ही देते हैं. अगर गैर-मेडिकल शिक्षक के पास क्लिनिकल अनुभव नहीं है तो बाकी के ७० फीसदी मेडिकल शिक्षक उसकी भरपाई क्यों नहीं कर सकते? जो बात ५० साल से सही थी वह अब नौकरी के आभाव में गलत लगने लगा है.

गैर-ड़ोक्टोरों द्वारा मेडिकल छात्रों को पढाना कोई अनोखी बात नहीं है और न ही इस देश की विशेषता है. पश्चिम के कई देशों में भारत से भी पूर्व चला आ रहा है. इन देशों के अधिकांश मेडिकल कॉलेजों में प्री-क्लिनिकल और पारा-क्लिनिकल विषयों में गैर-डॉक्टर शिक्षक ही पढ़ाते हैं. विश्व के 10 शीर्ष मेडिकल कॉलेजों में गैर-डॉक्टर शिक्षकों की मात्रा 60 फीसदी तक है. इन कई देशों के वैद्यकीय शिक्षा प्रणाली में प्री-क्लिनिकल और पारा-क्लिनिकल विषयों में MD कोर्स ही नहीं होते. उनका तथ्य है की डॉक्टर का मूलभूत भूमिका रोगियों के चिकत्सा का है, न की केवल एक शिक्षक का. भारत में डॉक्टरों की कमी को देखते हुए सरकार को प्री-क्लिनिकल और पारा-क्लिनिकल विषयों में MD कोर्स को बंद या कम कर देना चाहिए ताकि अधिकतम डॉक्टर स्वास्थ्य और  चिकित्सा के काम आ सके.

फिलहाल, दोनों पक्ष MCI, MCI द्वारा घटित उप समिति और स्वास्थ्य मंत्रालय को अपना पक्ष रख रहे हैं. IMA सहित अनेक डॉक्टरों के संघों ने MCI के प्रस्ताव का समर्थन किया है, वंही गैर-मेडिकल वर्ग के लोग परेशान हैं.
एक अनुसार के मुताबिक समूचे भारत में , इन पांच गैर-क्लिनिकल विषयों में कुल १३ फ़ीसदी शिक्षक गैर-मेडिकल हैं. अगर स्वास्थ्य मंत्रालय MCI के इस प्रस्ताव को स्वीकृति देती है तो गैर-मेडिकल शिक्षकों की नौकरी खतरे में आ सकती है. जो शिक्षक कई साल और दशकों से सेवावृत हैं, उन्हें निष्काषित किया जा सकता है या फिर अपमानजनिक स्थिथिओं में रहना पड़ सकता है. सैंकड़ो विद्यार्थी जो मेडिकल M.Sc या Ph.D कर रहे हैं, उनका भविष्य भी अँधेरे में है.

गैर-मेडिकल शिक्षकों का मानना है कि MCI ने सदैव ही उनके साथ सौतेला व्यवहार ही किया है, पांच दशक से साथ रहने पर भी उन्हें कभी अपना नही माना, वैद्यकीय परिवार का हिस्सा नहीं माना. डॉक्टर न होने की वजह से मेडिकल कॉलेजों में अनेक प्रकार के भेदभाव को झेलना पड़ता है. उन्हें रोज़ाना तौर पर अपने आप को सिद्द करना पड़ता है, इसलिए उन्हें अपने काम में तत्परता दिखानी पड़ती है. अपनी लगन और क्षमता के चलते, ये स्किक्षक मेडिकल छात्रों के प्रशंसा के पात्र बनते हैं. कई बार शिक्षकों के नौकरी के साक्षात्कार में गैर-मेडिकल लोग मेडिकल अभ्यार्ति से बेहतर प्रदर्शन कर चयन होते हैं.

अपने वर्ग के लोगो को नौकरी मिले इस फितरत में दुसरे वर्ग की सोशल मीडिया में बदनामी की जा रही है. अपने को श्रेष्ट और दुसरे को नालायक सिद्द करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. इस तरह वैद्यकीय शिक्षकों में एक अस्वस्थ वातावरण छा गया है, जिनका असर विद्यार्थियों पर पड़ सकता है. इस समय सरकार को पक्षपात किये बिना चाहिए की अनैतिक लॉबिंग की अनदेखा करें और निर्णय ले की मेडिकल शिक्षा में दोनों वर्गों के शिक्षकों को अवसर मिले. अछि शिक्षा के लिए उत्तम योग्यता वालों का चयन हो, न सिर्फ डिग्री के नाम पर. सिर्फ इसलिए की अब गैर-क्लिनिकल डॉक्टर उपलब्ध हैं, गैर-मेडिकल लोगों की अनदेखी हो, यह बात सही नहीं है. साथ में सर्कार को इन अल्पसंख्यक गैर-मेडिकल शिक्षकों के हितों की भी रक्षा करनी चाहिए. इन दोनों देग्रीयों के बीच स्पर्धा के बजाय दोनों साथ मिलकर काम करें तो सबका भला होगा. बदलते सन्दर्भों में युवा वर्ग को मीडियल M.Sc कोर्स में भर्ती होने से पहले उसके कैरियर के अवसर की जांच करनी होगी. साथ ही में, जो मेडिकल कॉलेज ये कोर्स चला रहें हैं, उन्हें भी इस कोर्स के भविष्य और उपयुक्ति पर विमर्श करना होगा



















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